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बिन तुम्हारे………………

मेरी कविताये !
मेरी कविताये !
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मैं हूँ तो तुम्हारा ही अंश,
फिर क्यूँ हो मुझे छोड़ जाते ?
बिन तुम्हारे………………
अब कैसे होगा ?
यह दग्ध ह्रदय शांत !
अब तो है यह जीवन,
अशांत,अशांत, अशांत…………
यह सारा खेल मैं नहीं समझ पाती,
बस हूँ इतना ही,
जानती…………………
तुम ही हो मेरे त्राता ,
करो मेरा त्राण !
करो न विचलित मेरे प्राण !!
मैं हूँ तो तुम्हारा ही अंश ,
फिर क्यूँ हो मुझे छोड़ जाते ?
बिन तुम्हारे………………
अब कैसे होगा ?
यह दग्ध ह्रदय शांत !
मुझे कुछ नहीं चाहिए ,
चाहिए तुम्हारा सतत सानिध्य !
ताकि जान सकूँ वह मार्ग ,
जो ले जायेगा सर्व मंगल की ओर !
जहाँ नहीं है कोई छोर …….
मैं हूँ तो तुम्हारा ही अंश
फिर क्यूँ हो मुझे छोड़ जाते ?
बिन तुम्हारे………………
अब कैसे होगा ?
यह दग्ध ह्रदय शांत !

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