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चलते ही जाना है ………

मेरी कविताये !
मेरी कविताये !
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चलना तो  होगा ही,

स्वयं को क्यों छलना ?

अकेला ही है चलना ,

चलना है चलना है ,

कब कौन मिलेगा ?

साथ देगा या देगा बिछोह

क्योँ ये उठे मोह ?

प्रहर  क्यों  हो चिंता  का ?

पोषण  क्यों  हो  व्यथा  का ?

चलना  है  चलना है ,

आगे  तो बढ़ना  है !

हर  डगर  चढ़नी  है,

चढ़  कर  उतरनी  है ,

राह क्यूँ ठिठ्कू ?

एक प्रहर क्यूँ ठहरूं ?

कब रुकी दुपहरी है ?

बस आगे ही बढ़ना है,

यही एक सपना है ,

चलना है चलना है,

है कहाँ दूसरा ?

जिसे अपना लूँ मैं,

जो है बस,

वही तो है अपना,

किसको भुला दूँ मैं ?

जब सभी है अपने,

है कौन पराया ?

फिर कैसी धूप ?

और कैसी छाया ?

समय तो सीमित है ,

लम्बे डग भरना है,

छोड़ संशय को,

कलुष  कायरता को,

मन की दुर्बलता को ,

सबल संकल्प लिए,

चलते ही जाना है ,

चलते ही जाना है ,

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